02 जनवरी, 2013

बचा सको तो थोड़ी सी उम्मीद बचा लो ... खगड़िया जिला प्रगतिशील लेखक संध का चौथा सम्मेलन !

प्रलेस महासचिव राजेन्‍द्र राजन, गीतकार नचिकेता एवं अरविन्द श्रीवास्तव



-  साहित्यकारों को चादर से नही शब्दों से सम्मान देना चाहिए.. 
-  हिन्दुस्तान में हिन्दी विधवा विलाप कर रही है ..
-  हिन्दी सरकारी पैसे से जोहन्सबर्ग जा रही है... फाइव स्टार में बैठकर आप सही रचना नहीं दे सकते । 

(रविवार- 11 नवम्बर 2012)

 जिला प्रगतिशील लेखक संघ खगड़िया का चौथा सम्मेलन सह ‘गाँधी विमर्श की एक झलक’ पुस्तक का लोकार्पण व कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन जननायक कर्पूरी ठाकुर इन्टर विधालय, खगडि़या के सभागार में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के  मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार नचिकेता एवं मुख्य अतिथि राजेन्द्र राजन थे एवं मंच संचालक अरविन्द श्रीवास्तव।
खगड़िया जिला प्रलेस के अध्यक्षक विश्वनाथ ने आगत अतिथियों का स्वागत एवं अभिवादन किया उन्होंने कहा कि प्रलेस लेखकों की सबसे बड़ी जीत यह है कि उनके आदर्श पुरूषों की जयंतियों और उसपर परिचर्चा अब यथास्थितिवादी व प्रतिक्रियावादी भी करने लगे हैं। सचिव विभूति नारायण सिंह ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि खगडि़या जिला प्रलेस की स्थापना 2004 में हुई तब से यह इकाई अपने कार्यकलापों से अनवरत आगे बढ़ रही हैं। तथा 2016 के अगले राज्य सम्मेलन के लिए हम खुद को तैयार भी कर रहे हैं।
प्रलेस की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि साम्राज्यवाद के खिलाफ देश में स्वाधीनता के दीवाने ने गोली खाई, प्रलेस ने साहित्य व समाज को दिशा दी है, हमें सिर्फ अतीत का गुणगान नहीं करना है बल्कि भविष्य को और अधिक बेहतर बनाने के लिए संधर्षरत रहना है। लेखकों को राज दरबार से बाहर निकलकर बाहर जन संघर्षों से जुड़ना होगा। आज का शत्रु अदृश्य शक्ति है, आज साम्राज्यवादी बाजारवाद और पूंजी के माध्यम से हमें गुलाम बना रहे हैं। हिन्दुस्तान में हिन्दी विधवा विलाप कर रही है। हिन्दी सरकारी पैसे से जोहन्सबर्ग जा रही है... फाइव स्टार में बैठकर आप सही रचना नहीं दे सकते हैं। नागार्जुन ने कहा था कि कोई पुरस्कार मिल रही है तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती है। रामविलास शर्मा ने सभी पुरस्कारों को ठुकरा दिया था। नागार्जुन का मानना था कि यदि किसी व्यक्ति को मारना है तो उसकी प्रशंसा करो। कबीर आज भी प्रासंगिक हैं। साहित्यकारों को चादर से नही शब्दों से सम्मान देना चाहिए.. उन्होंने खगड़िया प्रलेस द्वारा प्रकाशित ‘अवाम’ पत्रिका का अगला अंक वरिष्ठ आलोचक खगेन्द्र ठाकुर की 75 वी वर्ष पर केन्द्रित करने की घोषणा की। पूर्व विधायक सत्यनारायण सिंह ने कहा कि भूमंडलीयकरण के इस दौर में प्रलेस के सामने कई चुनौती है।
समारोह के दूसरे सत्र में डा. लखन शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘गाँधी विमर्श की एक झलक’ का लोकार्पण आलोचक व गीतकार नचिकेता ने किया तथा भागलपुर से आये डा. विजय कुमार, चन्द्रशेखरम्, डा. कपिलदेव महतो आदि पुस्तक की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।
समारोह का एक और महत्वपूर्ण सत्र कवि सम्मेलन का था मुख्य आकर्षण जनगीतकार नचिकेता की उपस्थिति में कवियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। कवि घनश्याम ने ‘सबकुछ गवां चुकी है चिडि़या.. से कविता का आग़ाज किया। सुरेन्द्र विवेका ने अफवाहों का बाजार गर्म है.. शीर्षक कविता का पाठ किया। कवियों में विश्वनाथ, लषण शर्मा, वासुदेव सरस, रविन्द्र कुमार, विभूति ना. सिंह आदि ने काव्य पाठ किया, मुख्य अतिथि कवि नचिकेता ने कुछ प्रेमगीत से शुभारंभ किया उनके गीव व कविता की कुछ बानगी - आप नहीं चाहेंगे तो भी मौसम बदलेगा, क्षमा करें..! आप नहीं चाहेंगे फिर भी पत्तों में हरियाली होगी../ फूल बचा लो गंध बचा लो दुनिया नहीं बदलेगी/ बचा सको तो थोड़ी सी उम्मीद बचा लो / बचा सको तो थोड़ी सी मुस्कान बचा लो/ रंगों की गायब होती पहचान बचा लो / बचा सको तो हक इज्जत संघर्ष बचा लो / जीने का मकसद. सच्चा आदर्श बचा लो/ कविता की लय-छन्द बचा लो... दुनिया नष्ट नहीं होगी !
कवि सम्मेलन सत्र का संचालन मधेपुरा से आये कवि अरविन्द श्रीवास्तव ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन विश्वनाथ ने किया। 

      - अरविन्द श्रीवास्तव, (मधेपुरा)
बिहार प्रलेस मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता

10 नवंबर, 2012

‘खुली खिड़कियों वाला तहखाना’ के बहाने कविता की पड़ताल !

बांयें से- पटना दूरदर्शन निदेशक कृष्ण कल्पित, कवि आलोक धन्वा, आलोचक खगेन्द्र ठाकुर, कवयित्री रानी श्रीवास्तव, कवि शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन एवं अरविन्द श्रीवास्तव..
       

- कविता साधना है, इसको लेकर कोई हड़बड़ी नहीं होनी चाहिए - अरुण कमल
- कविता लिखने का कोई फार्मूला नहीं होता - खगेन्द्र ठाकुर
- स्त्री विमर्श या किसी अन्य विमर्श पर लिखी गई कविताएं कमजोर होती है- कृष्ण कल्पित
- कविताओं को विमर्श से नहीं समझा जा सकता, कविता एक लंबी बहस है - आलोक धन्वा

 रविवार (२८ अक्टू.१२) को पटना में कवि और आलोचकों का अद्भुत संगम प्रगतिशील लेखक संघ, पटना इकाई द्वारा आयोजित कवयित्री रानी श्रीवास्तव के कविता संग्रह ‘खुली खिड़कियों वाला तहखाना’ के लोकार्पण समारोह में दिखा। जिसकी  अध्यक्षता पद्मश्री रवीन्द्र राजहंस ने की तथा संचालन कवि राजकिशोर राजन ने किया।
इस मौके पर आलोचक खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि कविता का कोई फार्मूला नहीं होता और न आलोचना किसी फार्मूले पर लिखी जाती है। रानी श्रीवास्तव की कविताएं यही बोध कराती है और विश्वास को पाले रखती है। इनकी कविताओं में मनुष्यता की चिंता है।
वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने कहा कि कविता लिखना साधना का काम है, इसको लेकर कोई हड़बड़ी नहीं होनी चाहिए। रानी श्रीवास्तव की कविताएं पढ़ने पर वेदना दूर होती है। रश्मिी रेखा, सविता सिंह, पूनम सिंह, अनामिका जिस तरह से समकालीन हिन्दी कविता में सक्रिय हैं मेरा विश्वास है कि रानी श्रीवास्तव दूसरी पंक्ति में दिखाई देगी। उन्होंने आगे कहा कि हिन्दी में सबसे बुरा हाल छंदों का है, छंद लिखना सबसे कठिन काम है। दुनिया का हर श्रेष्ठ कवि छंद को जानता है...।
कवि आलोक धन्वा ने कहा कि कविता एक लंबी बहस है और रानी श्रीवास्तव ने इसमें सुखद हस्तक्षेप किया है। इनकी कविताओं में किसी तरह की चालाकी, कौशल या छद्म दिखाई नहीं देता।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री रवीन्द्र राजहंस ने रानी श्रीवास्तव की कविताओं में संभावनाओं की प्रचूरता को रेखांकित किया। विधान पार्षद केदार नाथ पाण्डेय ने कविता को जनसाधारण का हथियार बताया।
पटना दूरदर्शन के निदेशक और कथाकार कृष्ण देव कल्पित ने कहा कि समकालीन हिन्दी कविता में पिछले दस वर्षों में कवयित्रियों की जितनी संख्या बढ़ी है वह चैकाती है। स्त्री विमर्श या किसी अन्य विमर्श पर लिखी गई कविताएं कमजोर होती है। रानी श्रीवास्तव की कविताएं अलग-अलग विषयों पर लिखी गई है। कथाकार विजय प्रकाश ने रानी श्रीवास्तव की कविताओं पर समग्रता से प्रकाश डाला। कवि शहंशाह आलम ने कविता की सहजता और इनकी कविताओं में विषयगत वैविध्यता के साथ-साथ गहन सूक्ष्मता को रेखांकित किया।
अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा कि रानी श्रीवास्तव की कविताओं से गुजरना किसी नर्म मुलायम कोमल फर्श पर चलने का अहसास नहीं बल्कि पथरीली पगडंडियों का कठिन सफर के साथ दुष्चक्रों का चक्रव्यूह तोड़ने का नाम है, इनकी कविताओं में यर्थाथ और भोगा हुआ सच का अद्भुत सामंजस्य है, कोलाज है। ...कवयित्री का अपनी निजी दुनिया से अनुबन्ध है जिसे बगैर किसी लाग लपेट और भाषिक चमत्कार के बेझिझक सुधी पाठकों के समक्ष साझा करती है। चुप्पी भरे समय में इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी ?

आलोचक रेवती रमण, कवयित्री पूनम सिंह, मिथिलेश कुमारी मिश्र, डा. बीएन पाण्डेय, राकेश प्रियदर्शी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन राजकिशोर राजन एवं धन्यवाद ज्ञापन शहंशाह आलम ने किया। पटना में प्रगतिशील लेखक संघ के इस आयोजन की धमक काफी समय तक सुनाई पड़ेगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

                                                   - अरविन्द श्रीवास्तव (मधेपुरा)

                                 प्रलेस मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता बिहार


                                                                                                                                                  

22 अक्तूबर, 2012

सहरसा में टूटा साहित्यिक सन्नाटा प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा कवि सम्मेलन


- घाट पर ही छटपटा कर सूख जाती है गंगा... ।’ - युवा कवि अरुणाभ सौरभ 

     हरसा में साहित्यिक सन्नाटे को तोड़ते हुए यहाँ के रचनाकारों ने प्रगतिशील लेखक संघ, जिला इकाई के बैनर तले गौतम नगर स्थित शशि सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान में कवि सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने की तथा संचालन रामचैतन्य धीरज ने किया। 
कार्यक्रम का शुभारंभ गुवाहाटी (असम) से आये युवा कवि अरुणाभ सौरभ ने ‘तुम मेरी कविता में आना’ शीर्षक से की, उन्होंने कहा- घाट पर ही छटपटा कर सूख जाती है गंगा... ।’ युवा कवयित्री स्वाती शाकाम्भरी ने अपनी मैथिली कविता के माध्यम से उपस्थित श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया ।  कवि मुख़्तार आलम ने अपनी - अहंकार, काया और मैं नदी हूँ शीर्षक कविता से माहौल को खुशनुमा बनाया। रंगकर्मी व सिनेजगत से जुड़े किसलय कृष्ण ने कहा कि सहरसा में इस तरह का आयोजन स्वागतेय है। उन्होंने दुष्यंत की पंक्तियों से अपने काव्य की शुरुआत की। कवयित्री अपर्णा ने ‘जीवन संग्राम’ शीर्षक कविता से काव्य पाठ किया। मैथिली के चर्चित कवि अरविन्द नीरज ने अपने गीतों से श्रोताओं का भरपूर उत्साहवर्द्धन किया। कवि अरविन्द श्रीवास्तव ने ऐसे आयोजनों की सार्थकता को रेखांकित करते हुए अपनी ‘प्रेम’ शीर्षक कविता का पाठ किया। सहरसा प्रलेस के सचिव देवनारायण साह ने अपनी व्यंग्य कविता के माध्यम से वर्तमान यथार्थ को उकेड़ा। नवोदित कवि अरुण परासर अपनी कविता ‘खुद की बनाई गोलियों से मर रहा इंसान ...। सुना कर श्रोताओं को सोचने पर विवश किया। कवि आचार्य धीरज ने - चांदनी मुस्कुराने लगी, आपकी याद आने लगी... गज़ल सुनाकर श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। सम्मेलन के अन्त में वरिष्ठ कवि हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने कोसी के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए अपनी कविता - ‘यह कोसी तट वंशीवट है, ग्राम्य किशोरी का पनघट है।’ को सुना कर आयोजन को यादगार बना दिया। इस सफल आयोजन पर शशि सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान के सचिव वंदन कुमार वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
                            - अरविन्द श्रीवास्तव 

02 अक्तूबर, 2012

बारिश के बहाने कवियों ने अपनी चुप्पी तोड़ी !



 बिहार की राजधानी पटना में कवियों का अद्भुत समागम दिखा। अवसर था ‘प्रगतिशील लेखक संघ‘ की पटना जिला इकाई के तत्वावधान में 30 सितम्बर को केदार भवन में आयोजित ‘बारिश‘ विषयक कविता-पाठ का । इस काव्य पाठ की अध्यक्षता युवा कवि राकेश प्रियदर्शी ने की तथा संचालन  अरविन्द श्रीवास्तव ने किया। 

बारिश को नया अर्थ और नया आयाम देते हुए चर्चित युवा कवि शहंशाह आलम ने इस अवसर को कुछ यूँ सार्थक किया- ‘मैं मुरीद हुआ इस बारिश का / जो मेरी खिड़की पर बरस रही है / झमाझम मीठे संगीत की तरह निरंतर‘।

काव्य पाठ को आगे बढ़ाते हुए युवा कवि राकेश प्रियदर्शी ने बारिश के मौसम को रेखांकित करते हुए सुनाया-‘ कितना बड़ा हो गया है घर/ सारा घर सारा आकाश/ हर कोने में काले-काले बादल/ और इन्द्रधनुष/ सिर्फ़ तुम्हारी आँखों में।‘

अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा कि - ‘बारिश थी धरती पर / इसलिए बीजों में अंकुरण था / प्रस्फुटन था और था/ सिलसिला सृजन का ।‘ उन्होंने आगे कहा - अब बारिश भरी रातों में / सिहर उठता हूँ अक्सर/ जब महसूसता हूँ/ अपनी गर्दन पर / तुम्हारी साँसों की छुवन।‘ 

इस मौके पर डा. रानी श्रीवास्तव, राजेन्द्र राजन, परमानन्द राम आदि कवियों ने भी बारिश विषयक अपनी-अपनी स्तरीय कविताओं का पाठ किया। 
धन्यवाद ज्ञापन कवि शहंशाह आलम ने किया।

- अरविन्द श्रीवास्तव, मीडिया प्रभारी-सह-प्रवक्ता : बिहार प्रलेस
मोबाइल - 9431080862.     


26 सितंबर, 2012

‘दिनकर जयन्ती’ पर पटना प्रलेस का आयोजन - कवि सम्मेलन !



        आप नहीं चाहेंगे तो भी मौसम बदलेगा, क्षमा करें! 

    २३ सितंबर को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती पर बिहार प्रगतिशील लेखक संघ  की पटना जिला इकाई द्वारा पटना स्थित केदार भवन के सभागार में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ जनवादी गीतकार नचिकेता थे तथा संचालन डा. रानी श्रीवास्तव ने किया। 
       कार्यक्रम का आरंभ करते हुए राजेन्द्र राजन ने कहा कि ‘दिनकर’ की याद में आज का कार्यक्रम समर्पित है, उन्होंने आगे कहा कि हम जो रचते हैं, जनता के लिए रचते हैं। राष्ट्रकवि दिनकर भी यही किया करते थे। 
      इसके पश्चात युवा शायर विभूति कुमार की गजलों से कवि सम्मेलन का आगाज़ हुआ । कवि मुकेश तिवारी, जेपी राय, गणेश झा, आर पी घायल, राकेश प्रियदर्शी, गणेश बागी, श्रवण कुमार, मनोज कुमार आदि ने काव्य पाठ को जहाँ नई उँचाई दी वहीं वरिष्ठ गीतकार नचिकेता ने अपनी पंक्ति - आप नहीं चाहेंगे तो भी मौसम बदलेगा, क्षमा करें! से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। युवाकवि शहंशाह आलम अपनी कविता  - अगर तुम पूछो/कि मुझे बारिश के दिन अच्छे लगते हैं/ कि सर्दियों के/ मैं कहूँगा दोनों/ क्योंकि दोनों ही मौसम में/ हमारे दुश्मन हमसे इर्ष्या करते हैं ! से श्रोताओं को रोमांचित किया। सम्मेलन में कवि रमेश ऋतंभर, संजय कुमार कुंदन, राजकिशोर राजन, विनोद कुमार चैधरी, शिवदयाल, शिवनारायण एवं श्रीराम तिवारी ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि कविताओं से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। गीतकार श्रीराम तिवारी ने कहा - मौसम की दुनिया में हल्ला हुआ, पीले थे जो फूल वो लाल हो गये... । कवयित्री रानी श्रीवास्तव की कविता की देखें बानगी - पीपल के पत्तों की छाया/ कुछ छाँव न दे पाई मुझको/ इस देहरी से उस देहरी तक/ सब रिश्ते हो गए बेमानी।

- अरविन्द श्रीवास्तव, मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता, बिहार प्रगतिशील लेखक संघ
 मोबाइल - 09431080862.