22 अक्तूबर, 2012

सहरसा में टूटा साहित्यिक सन्नाटा प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा कवि सम्मेलन


- घाट पर ही छटपटा कर सूख जाती है गंगा... ।’ - युवा कवि अरुणाभ सौरभ 

     हरसा में साहित्यिक सन्नाटे को तोड़ते हुए यहाँ के रचनाकारों ने प्रगतिशील लेखक संघ, जिला इकाई के बैनर तले गौतम नगर स्थित शशि सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान में कवि सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने की तथा संचालन रामचैतन्य धीरज ने किया। 
कार्यक्रम का शुभारंभ गुवाहाटी (असम) से आये युवा कवि अरुणाभ सौरभ ने ‘तुम मेरी कविता में आना’ शीर्षक से की, उन्होंने कहा- घाट पर ही छटपटा कर सूख जाती है गंगा... ।’ युवा कवयित्री स्वाती शाकाम्भरी ने अपनी मैथिली कविता के माध्यम से उपस्थित श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया ।  कवि मुख़्तार आलम ने अपनी - अहंकार, काया और मैं नदी हूँ शीर्षक कविता से माहौल को खुशनुमा बनाया। रंगकर्मी व सिनेजगत से जुड़े किसलय कृष्ण ने कहा कि सहरसा में इस तरह का आयोजन स्वागतेय है। उन्होंने दुष्यंत की पंक्तियों से अपने काव्य की शुरुआत की। कवयित्री अपर्णा ने ‘जीवन संग्राम’ शीर्षक कविता से काव्य पाठ किया। मैथिली के चर्चित कवि अरविन्द नीरज ने अपने गीतों से श्रोताओं का भरपूर उत्साहवर्द्धन किया। कवि अरविन्द श्रीवास्तव ने ऐसे आयोजनों की सार्थकता को रेखांकित करते हुए अपनी ‘प्रेम’ शीर्षक कविता का पाठ किया। सहरसा प्रलेस के सचिव देवनारायण साह ने अपनी व्यंग्य कविता के माध्यम से वर्तमान यथार्थ को उकेड़ा। नवोदित कवि अरुण परासर अपनी कविता ‘खुद की बनाई गोलियों से मर रहा इंसान ...। सुना कर श्रोताओं को सोचने पर विवश किया। कवि आचार्य धीरज ने - चांदनी मुस्कुराने लगी, आपकी याद आने लगी... गज़ल सुनाकर श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। सम्मेलन के अन्त में वरिष्ठ कवि हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ ने कोसी के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करते हुए अपनी कविता - ‘यह कोसी तट वंशीवट है, ग्राम्य किशोरी का पनघट है।’ को सुना कर आयोजन को यादगार बना दिया। इस सफल आयोजन पर शशि सरोजनी रंगमंच सेवा संस्थान के सचिव वंदन कुमार वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
                            - अरविन्द श्रीवास्तव 

02 अक्तूबर, 2012

बारिश के बहाने कवियों ने अपनी चुप्पी तोड़ी !



 बिहार की राजधानी पटना में कवियों का अद्भुत समागम दिखा। अवसर था ‘प्रगतिशील लेखक संघ‘ की पटना जिला इकाई के तत्वावधान में 30 सितम्बर को केदार भवन में आयोजित ‘बारिश‘ विषयक कविता-पाठ का । इस काव्य पाठ की अध्यक्षता युवा कवि राकेश प्रियदर्शी ने की तथा संचालन  अरविन्द श्रीवास्तव ने किया। 

बारिश को नया अर्थ और नया आयाम देते हुए चर्चित युवा कवि शहंशाह आलम ने इस अवसर को कुछ यूँ सार्थक किया- ‘मैं मुरीद हुआ इस बारिश का / जो मेरी खिड़की पर बरस रही है / झमाझम मीठे संगीत की तरह निरंतर‘।

काव्य पाठ को आगे बढ़ाते हुए युवा कवि राकेश प्रियदर्शी ने बारिश के मौसम को रेखांकित करते हुए सुनाया-‘ कितना बड़ा हो गया है घर/ सारा घर सारा आकाश/ हर कोने में काले-काले बादल/ और इन्द्रधनुष/ सिर्फ़ तुम्हारी आँखों में।‘

अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा कि - ‘बारिश थी धरती पर / इसलिए बीजों में अंकुरण था / प्रस्फुटन था और था/ सिलसिला सृजन का ।‘ उन्होंने आगे कहा - अब बारिश भरी रातों में / सिहर उठता हूँ अक्सर/ जब महसूसता हूँ/ अपनी गर्दन पर / तुम्हारी साँसों की छुवन।‘ 

इस मौके पर डा. रानी श्रीवास्तव, राजेन्द्र राजन, परमानन्द राम आदि कवियों ने भी बारिश विषयक अपनी-अपनी स्तरीय कविताओं का पाठ किया। 
धन्यवाद ज्ञापन कवि शहंशाह आलम ने किया।

- अरविन्द श्रीवास्तव, मीडिया प्रभारी-सह-प्रवक्ता : बिहार प्रलेस
मोबाइल - 9431080862.